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Friday, January 22, 2021

जो सोचना है , सोच लीजिए 

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जो सोचना है , सोच लीजिए 

जो चाहे कह लीजिए। 

गर फिर भी दिल ना भरे 

जी चाहे जितना हमें 

उतना कोस लीजिए।

मैं आज हूँ तो शिकवे हैं

तुम कल हो मेरे। 

मैं भला बुरा क्यूँ मानूँ।।


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गगन टांकड़ा 

(२३-०१-२१ )

Saturday, July 25, 2020

खिजा के गुल

खिजा के गुलों  से गुलशन गुलजार कहाँ होते हैं। 
गम-ए-अश्क से भरकर चिराग रौशन कहाँ हैं।  

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गगन टांकड़ा 
(२७-०७-१९)

तेरा शुक्रिया

तेरा शुक्रिया,,,,,,,,,,,,,,,,,
                   तेरा शुक्रिया ,,,,,,,,
बस एक बीज था मैं ,,,,,,
              तूने कीचड़ फेंक कर मुझे खिला दिया 
तेरा शुक्रिया ,,,,,,
                   तेरा शुक्रिया ,,,,,,,,,

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गगन टांकड़ा 
(२५-०७-२०२०)

ये बेरुखि के चिलमन जो तुमने घेरे हैं



ये बेरुखि के चिलमन जो तुमने घेरे हैं 
     बड़े खेल जिंदगी के तुमने खेले हैं। 

अब अकेले ही चलना होगा तुम्हे जिंदगी भर। 
वरना ...... जो बचेगा 
     वो बस मिटटी के ढेले हैं।  


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गगन टांकड़ा 
(२०_०७_१९)

Tuesday, July 7, 2020

वक़्त सही

वक़्त सही वक़्त पर 
दिखा ही देता है उनको हैसियत। 

जो वक़्त पर  सही और गलत को 
चुनने में थोड़ा वक़्त नहीं लेते। 

गगन टांकड़ा 
[०७/०७/२०२०] 

जितनी चाहे

जितनी चाहे बद्दुआ तू देदे मुझे 

जितनी चाहे बद्दुआ तू देदे मुझे 

आज जो है वो तेरा है ,
 कल जो जाएगा वो भी तेरा ही होगा। 

गगन टांकड़ा
(०५-१०-१९)

क्या करोगे जानकर

क्या करोगे जानकर तुम अपना नफ़ा नुक्सान 

अरे ,,,,,,,
तुम तो खुदगर्ज हो फैसले लेने से पहले किसी का सोचते ही कहाँ हो। 

गगन टांकड़ा 

Thursday, June 11, 2020

पुछा है आज किसी ने


पूछा है आज किसी ने , क्यों न कर लूँ मैं खुद की ही इबादत.... 
फ़क़ीरों ने बताया है , मुझमे ही खुदा है। 
मैनें भी हंसकर जवाब दिया और बोला। 
कि इबादत खुद से होती है खुद की नहीं
         इबादत खुद से होती है खुद की नहीं
गर खुद की इबादत करोगे तो डर ये है......  
 खुद को ही  खुदा करार करदोगे । 

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गगन टांकड़ा 
(११-०६-२०२०)

नहीं दिखाई देता उसको



नहीं दिखाई देता उसको ,जिसे देखना ही नहीं होता। 
लेकिन उसे  वो सब दिखाई देता है , जो उसे नहीं देखना होता। 

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गगन टांकड़ा
(११-०६-२०२०)

बड़ा शौक रखते हो

बड़ा शौक रखते हो अंगारों से खेलने का....... 

बस याद रखना "होलिका" के अहंकार का राख में मिलने का। 

कोई "खुदा" संग नहीं देता जब इंसान का जब घमंड बोलता है...... 

"शक्ति" तो देता है मगर इस्तमाल करने की "अक्ल" खो देता है। 

तो कहीं हाल न होजाए तुम्हारा "भस्मासुर" सा...... 

खुद ही भस्म हो जाओ खुद से , फिर भी कहना किसी और का ही "कसूर "था। 

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गगन टांकड़ा
(११-०६-२०२०)

कोई बात नहीं

कोई बात नहीं जो अभी तक ठंडा नहीं हुआ जिगर तुम्हारा। 

मैनें देर से ही सही धधकती चिताओ को भी शांत होते देखा है। 

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गगन टांकड़ा
(११-०६ -२०२० )

जिसके लिए

जिसके लिए लिखे थे एहसास 
   उसने कभी वो पढ़े ही नहीं। 

और जिसने पढ़ा उन शब्दों को 
एहसास मेरे समझे ही नहीं। 

⇹⇹⇹⇹⇹⇹⇹⇹⇹⇹⇹⇹⇹⇹⇹⇹

गगन टांकड़ा
(११-०६-२०२०)

तू क्या निकालेगा

तू  क्या निकालेगा खंजर से चीर कर इस दिल को .....

तू  क्या निकालेगा खंजर से चीर कर इस दिल को ..... 

पहले खुदगर्ज़  पता तो कर कि..... सीने में दिल होता कहाँ है। 

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गगन टांकड़ा
(११-०६-२०)

कौन कहता है

कौन कहता है तुज़से की तू बड़ी मतलबी है। 
तू तो तू है ,
तुझे औरों की क्या पड़ी है। 

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गगन टांकड़ा
(११-०६-२०)

गर सच्ची मोहोब्बत

गर सच्ची मोहब्बत का मतलब जिस्म का नजराना होता। 
तो यकीं मानो..... 
तवायफों की आशिकी को  जमाने भर ने सराहा होता। 

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गगन टांकड़ा
(७-०६-१९)

Tuesday, June 9, 2020

ना तो तुम

ना तो तुम तेज बरसात से हो... 
   जो जिस्म को तर बतर कर जाती है। 

तुम बदली हवाओं सी भी नहीं.... 
    जो मन को महका जाती है। 

तुम उस मध्दम बरसती आब की फुहार सी हो... 
    जब भी आती हो ..... रूह को जगा जाती हो। 

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गगन टांकड़ा 
(२५-०७-१९)

Sunday, May 10, 2020

Thursday, May 7, 2020

उनकी यादों से ही समां


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उनकी यादों से ही समां, रंगीन होजाता हो।   ..... 

जो वो सच में आजाते, तो ना जाने क्या बात हो। ......

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गगन टांकड़ा 
(३१-०८-२०१७)


बारिश जो बरसे सुबह बूंदों में


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बारिश जो बरसे सुबह बूंदों में
 अक्स जो ना हो तेरा
 तो भीगने का क्या फायदा 

सुबह की पहली खिली कली से
 जो ना आए तेरी महक
 तो सूंघने का क्या फायदा 

चिड़ियों की चहक में 
जो ना हो तेरी हंसी 
तो उन्हे सुनने में  क्या फायदा 

मेरी हर सांस में 
जो तेरी यादें ना हो बसी 
तो ऐसे जीवन को जीने का क्या फायदा 

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गगन टांकड़ा 
(२२-०६-२०१७)

किसी भी बात पर ठहाके लगाना छोड़ दिया




किसी भी बात पर ठहाके लगाना छोड़ दिया। 

वो छत पर जाकर बारिशों में नहाना छोड़ दिया। 

छोड़ दिया भरी धूप में पेड़ों के निचे मिटटी से खेलना। 

छोड़ दिया अब यारों को पीछे से आकर धकेलना। 

मगर नहीं छूटी वो याद  बचपन की। 

घरवालों से छुप कर जागी वो रात बचपन की। 

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गगन टांकड़ा 
(२८-०४-१७) 

दिल करता है बांके बंजारा निकलूं


दिल करता है बांके बंजारा निकलूं 
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दिल करता है, बनके बंजारा निकलूं 
  पीछे हर बात छोड़ के। 

आज फिर निकली है, सुबह हसीन 
घटाओं की चादर ओढ़ के। 


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गगन टांकड़ा 
(०३-०७-२०१७)